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जम्मू-कश्मीर की राज्य का दर्जा बहाल करने जा रहे हैं अमित शाह: क्या इतिहास रचने की तैयारी?

जम्मू-कश्मीर की सियासत में फिर हलचल

बीते छह साल में जम्मू-कश्मीर की सूरत ऐसी पहली बार बदलने जा रही है, जब राज्य के फिर से राज्य बनने की उम्मीदें बेहद मजबूत नजर आ रही हैं। गृह मंत्री अमित शाह के ताजा कदम को लेकर पूरे राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज है। बता दें, 5 अगस्त 2019 को शाह ही वह नेता थे जिन्होंने संसद में अनुच्छेद 370 को हटाने का ऐतिहासिक ऐलान किया था। इस एक फैसले ने जम्मू-कश्मीर के दशकों पुराने 'विशेष राज्य' के दर्जे को खत्म कर दिया, और उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में बांट दिया गया। उस वक्त जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग थी और राष्ट्रपति शासन लागू था।

बीजेपी का यह एजेंडा कोई नया नहीं था। श्यामा प्रसाद मुखर्जी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी तक नेतागण, जम्मू-कश्मीर के भारत में पूरी तरह विलय की वकालत करते रहे हैं। पिछले कई सालों से 'राज्य का दर्जा बहाल होगा, मगर सही समय पर', यह आश्वासन बीजेपी और अमित शाह दोनों देते आए हैं। अब जब अनुच्छेद 370 हटाने की छठी सालगिरह है, सरकार अचानक से एक्टिव नजर आती है। प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु के बीच मुलाकातों का दौर चला है। इन बैठकों ने सबका ध्यान खींचा है।

बहाली की प्रक्रिया टेक्निकल, लेकिन संदेश बड़ा

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अगर शाह वाकई ऐसी घोषणा करते हैं, तो पहले जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को खत्म करना होगा, जिसने 2019 में राज्य का स्टार हटाया था। फिर एक नया बिल संसद में लाना पड़ेगा, और उसमें राष्ट्रपति की सिफारिश जरूरी होगी। आइडेंटिकल प्रक्रिया संसद के दोनों सदनों—लोकसभा और राज्यसभा—से होकर गुजरनी होगी। यह कदम बीजेपी के पुराने वायदे को ‘ध्यान बंटाने वाली चाल’ बताकर विपक्ष जरूर निशाना साध रहा है, लेकिन कश्मीर के कई स्थानीय नेता इस फैसले को वापसी का रास्ता मान रहे हैं।

ओमर अब्दुल्ला समेत तमाम नेता लगातार मांग कर रहे थे कि जम्मू-कश्मीर की राज्य विधानसभा और राजनीतिक पहचान बहाल हो। राज्य में स्थानीय लोगों की आवाज लगातार शांत होती दिखी है, तो बहाली की कवायद राजनीतिक गर्मी बढ़ा रही है।

शाह का कार्यकाल इतिहास में हमेशा पॉवरफुल फैसलों के लिए याद रहेगा—चाहे वह 2019 का ऐतिहासिक कदम हो या आगे का संभावित राज्यत्व बहाल करने का प्रस्ताव। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि संसद के मानसून सत्र के खत्म होने से पहले कितनी तेजी से सरकार कदम बढ़ाती है।

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