पुरी रथ यात्रा: लकड़ी से बनती परंपरा, हर रथ में बसी है आस्था
पुरी की रथ यात्रा सिर्फ एक त्योहार नहीं है—ये आस्था, परंपरा, और कड़ी मेहनत से गढ़ी गई विरासत का उत्सव है। हर साल जैसे ही अक्षय तृतीया आती है, पुरी के रथ खला (रथ अस्थायी शिल्पशाला) में हलचल शुरू हो जाती है। यहां 200 अनुभवी कारीगर जुट जाते हैं, जिनमेंरथ निर्माण की जिम्मेदारी लोगों के दिलों से जुड़ी है।
इन कारीगरों में 78 महाराणा सेवक हैं—ये वे कारीगर हैं जिनका परिवार सदियों से रथ बनाने की परंपरा निभा रहा है। रथ निर्माण की शुरुआत 2025 में 30 अप्रैल को हुई, और हर दिन लकड़ियों की गूंज, छेनी-हथौड़े की टंकार और भक्ति से सराबोर माहौल वहां देखने को मिल रहा है।
रथ खला में तीन खास रथ आकार ले रहे हैं—नंदीघोष (भगवान जगन्नाथ के लिए), तालध्वज (बलभद्र के लिए) और दर्प दलन (देवी सुभद्रा के लिए)। हर रथ की बनावट, उसमें इस्तेमाल होने वाली लकड़ी, और आकार-प्रकार निश्चित परंपराओं के तहत होता है। हैरानी की बात यह है कि इन रथों के निर्माण में एक भी कील या आधुनिक मशीन का इस्तेमाल नहीं होता। सभी जोड़ पारंपरिक लकड़ी के ताले, पेग और रस्सियों के जरिए किए जाते हैं।
रथ निर्माण प्रक्रिया का हर दिन खास है, लेकिन 19वें दिन—19 मई को—भौरी पर्व का आयोजन होता है। भौरी त्यौहार निर्माण के मध्य बिंदु का प्रतीक है, और इस दिन पूरे क्षेत्र में भक्ति की लहर दौड़ जाती है।
रथ निर्माण की परंपरा, देवताओं की तैयारी और श्रद्धा का महासागर
रथों के डिजाइन और तकनीक में इतनी सावधानी बरती जाती है कि सालों से हर कड़ी परंपरा के अनुरूप ही रहती है। नंदीघोष रथ में 16 पहिए, तालध्वज में 14 और दर्प दलन में 12 पहिए लगाए जाते हैं। अब तक 26 पहिए अपनी जगह फिट हो चुके हैं और कुल मिलाकर 36 पहियों का काम पूरा हो चुका है।
रथ पर लकड़ी की नक्काशी, रंग-बिरंगे कपड़ों की सजावट और रेशमी रस्सियों के आगे विवेकपूर्ण योजना के बिना ये महापर्व संभव नहीं। विजय महापात्रा, जो नंदीघोष के मुख्य कारीगर हैं, बताते हैं कि प्रतिवर्ष की तरह तीनों रथ अलग-अलग तैयार होते हैं और उन पर कारीगरों की पूरी लगन झलकती है।
रथ यात्रा का यह हिस्सा केवल एक कड़ी है, पूरा उत्सव बहुत लंबा चलता है। स्नान पूर्णिमा (11 जून) को जब तीनों भगवानों को 108 कलशों में स्नान कराते हैं, उसके बाद ‘अनवासर’ (13-26 जून) की अवधि आती है। इतने भव्य स्नान के बाद भगवानों को 15 दिन तक ‘बीमार’ मानकर विश्राम कराया जाता है—इस दौरान भक्तों को उनके दर्शन नहीं होते।
जैसे-जैसे 27 जून (रथ यात्रा 2025) की तारीख नजदीक आती है, हजारों भक्त-पुलिस बल सुरक्षा में तैनात रहते हैं। लाखों की भीड़ पुरी पहुंचती है—अपने आराध्य के रथ को खींचने, उनकी एक झलक पाने और विश्वास की इस यात्रा में शामिल होने के लिए।
- रथ बनाने की सभी नीतियाँ पुरानी लिपियों और निर्देशों के आधार पर तैयार की जाती हैं।
- हर कारीगर को काम बांटा गया है—कोई पहिए बनाता है, कोई छत, और कोई साज-सज्जा करता है।
- पुरी के स्थानीय प्रशासन और जगन्नाथ मंदिर समिति की ओर से सुरक्षा के लिए सख्त इंतजाम किए जाते हैं।
पुरी की रथ यात्रा के साथ लोक की आस्थाएं, परंपराएं और जनसमुदायों की एकता दिखती है। हर साल की तरह 2025 में भी इसी ऊर्जा, भक्ति और रीति के साथ रथ यात्रा पुरी की सड़कों पर रंग बिखेरेगी।
Sara Khan M
जून 12, 2025 AT 05:20हर साल वही पुरानी परंपरा दोहराई जा रही है, नई कोई बात नहीं 😒
लकड़ी और रस्सियों के साथ ही रथ बनते हैं, बस यही दिखाना है।
shubham ingale
जून 14, 2025 AT 12:56बिलकुल सही! 🙌 रथ की शिल्पकला में हाथों का जादू है।
Ajay Ram
जून 16, 2025 AT 20:30पुरुषों की मेहनत और देवता की आस्था के संगम को देखना एक दार्शनिक अनुभव है।
जब लकड़ी के टुकड़ों को चीरते हुए कारीगरों की चुनिंदा उंगलीं उन पर अंकित करती हैं, तो वह इतिहास को पुनः लिखता है।
प्रत्येक बारीकी से कुटी हुई नक्काशी में सामाजिक मूल्य और सांस्कृतिक धरोहर की गूंज सुनाई देती है।
इस प्रकार के रथ निर्माण विद्वत्तापूर्ण कार्य नहीं, बल्कि एक जीवंत जीवनी है जो पीढ़ियों को जोड़ती है।
जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के प्रतिमाओं के लिए बनते इन रथों में प्रतीकात्मक अर्थ निहित होते हैं।
रथ की पहियों की संख्या, जैसे नंदीघोष में सोलह, तालध्वज में चौदह, दर्प दलन में बारह, गणितीय समानता को दर्शाती है।
यह गणना न केवल व्यावहारिक है, बल्कि दृश्य सौंदर्य और आध्यात्मिक संतुलन का प्रतिबिंब भी है।
रथ निर्माण में बिना कील के जोड़ना, बीते युग की तकनीक का सम्मान है, और यह आत्मनिर्भरता का संदेश देता है।
वास्तव में, यह एक परिर्वतनशील प्रक्रिया है जहाँ परंपरा को आधुनिक युग के साथ सहजता से मिलाया जाता है।
भौरी पर्व की मध्यवर्ती स्थिति, निर्माण के अर्द्ध बिंदु को दर्शाती है, जिससे कार्यशक्ति में नवीनीकरण होता है।
जगन्नाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालु अपनी आस्था को साक्षी बनाते हैं, जबकि कारीगरों की मेहनत को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
विषय के गहराई में जाकर हम देखते हैं कि यह रिवाज सामुदायिक एकता का प्रतीक भी है।
भक्तों की भीड़ और पुलिस की सुरक्षा उपाय दोनों मिलकर इस उत्सव को सुरक्षित बनाते हैं।
अंत में, यह कहा जा सकता है कि रथ यात्रा न सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक विविधता का प्रतिरूप है।
Dr Nimit Shah
जून 19, 2025 AT 04:03बहुत गहरी दृष्टि रखी है आपने, ज्ञान के शिखर से यह झलक दिखी। इस तरह के विश्लेषण से ही हमारी विरासत को मान मिलती है।
Ketan Shah
जून 21, 2025 AT 11:36रथ निर्माण में उपयोग की जाने वाली लकड़ी का प्रकार और उसकी उम्र, संरचनात्मक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण होता है। इससे रथ की दीर्घायु और यात्रा के दौरान संतुलन बनता है।
Aryan Pawar
जून 23, 2025 AT 19:10हां, यही कारण है कि कारीगरों को सालों का अनुभव होना चाहिए; वो लकड़ी की आवाज़ सुन कर सही टुकड़े चुन लेते हैं
Shritam Mohanty
जून 26, 2025 AT 02:43इन सभी परंपराओं में सरकार की झांसे देखी जा सकती हैं, सच तो यह है कि सस्ते मुनाफे के लिए भी परम्पराओं को ढाल दिया जाता है।
Anuj Panchal
जून 28, 2025 AT 10:16ट्रडिशनल फेल्लिसिटी मॉडल के अंतर्गत, प्रोडक्शन प्रोसेस को रेनॉर्मलाइज़ किया गया है, जो कि कॉस्ट इकोनॉमी को ऑप्टिमाइज़ करता है, परन्तु यह एथिकल इम्प्लीकेशन पर चर्चा योग्य है।
Prakashchander Bhatt
जून 30, 2025 AT 17:50जैसे ही यह रथ तैयार होता है, पूरे क्षेत्र में ऊर्जा का संचार होता है, सभी को एकजुट करता है। हमें इस उत्सव को पूरी मेहनत से संभालना चाहिए।
Mala Strahle
जुलाई 3, 2025 AT 01:23वास्तव में, इस प्रकार के सामुदायिक आयोजन हमें सामाजिक बंधनों की अहमियत सिखाते हैं; केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक पुनरुज्जीवन का साधन भी होते हैं।
जब लाखों लोग एक दिशा में चलते हैं, तो वह मानवता की शक्ति का प्रमाण बन जाता है, और यह ऊर्जा फिर अगले वर्ष की तैयारी में भी उपयोगी सिद्ध होती है।
इसलिए हम सभी को इस रथ यात्रा में भाग लेकर अपनी देनदारी निभानी चाहिए, न केवल पूजा के लिये बल्कि सामाजिक सहयोग के लिये भी।
Abhijit Pimpale
जुलाई 5, 2025 AT 08:56रथ के निर्माण में प्रयुक्त तकनीकें प्राचीन ग्रंथों में वर्णित मानकों के अनुरूप हैं, जिससे ऐतिहासिक सत्यनिष्ठा बनी रहती है।
pradeep kumar
जुलाई 7, 2025 AT 16:30सही कहा, यह पारंपरिक विधि ही हमें सांस्कृतिक अखंडता देता है।
MONA RAMIDI
जुलाई 10, 2025 AT 00:03रथ की परंपरा अब बोरिंग लग रही है।
Vinay Upadhyay
जुलाई 12, 2025 AT 07:36बिलकुल, कारण यह है कि कील नहीं लगाते तो रथ खुद ही उड़ जाएगा, है ना? असल में, यह पुरानी तकनीक केवल दिखावे के लिये रखी गई है। आज के युग में ऐसे काम में समय बर्बाद करना बकवास है। कारखाना में मशीन लगाकर काम आसान हो जाता, पर हमें परम्परा का सम्मान करना चाहिए, है न? 🙃