हाल ही में वेटिकन में आयोजित बिशपों की एक बैठक के दौरान, पोप फ्रांसिस ने समलैंगिक पुरुषों के लिए एक अत्यधिक अपमानजनक शब्द का उपयोग किया था, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें माफी मांगनी पड़ी है। इस घटना ने कैथोलिक समुदाय और विशिष्ट रूप से LGBTQ समुदाय में भारी नाराजगी उत्पन्न की है।
यह बैठक कैथोलिक सेमिनारियों में समलैंगिक पुरुषों को प्रवेश देने के सवाल पर चर्चा करने के लिए आयोजित की गई थी। पोप फ्रांसिस ने इस विचार का कड़ा विरोध किया और कहा कि पहले से ही सेमिनारियों में बहुत अधिक 'frociaggine' है। इस शब्द को व्यापक रूप से समलैंगिक पुरुषों और उनकी संस्कृति के लिए एक गंभीर अपमानजनक शब्द माना जाता है।
बीते दिनों, वेटिकन के प्रेस कार्यालय के निदेशक, माटेयो ब्रूनी ने एक बयान जारी किया जिसमें कहा गया कि पोप फ्रांसिस का उद्देश्य किसी को आहत करने का नहीं था और वे उन सभी से माफी मांगते हैं जो इस टिप्पणी से आहत हुए हैं। यह घटना पोप फ्रांसिस और वेटिकन से संबंधित कई मिश्रित संदेशों की श्रृंखला का हिस्सा है, जिसने कई लोगों को भ्रमित और आहत किया है।
अभी हाल ही में, वेटिकन ने एक दस्तावेज जारी किया था जिसका शीर्षक 'Infinite Dignity' था। इस दस्तावेज में 'लिंग परिवर्तन' और 'लिंग सिद्धांत' को गंभीर खतरों के रूप में वर्णित किया गया था। इसके पहले, वेटिकन ने एक दिशा-निर्देश जारी किया था जिसमें कहा गया कि पुरोहित समलैंगिक रिश्तों में रहने वाले लोगों को आशीर्वाद दे सकते हैं, लेकिन स्वयं समलैंगिक रिश्तों को नहीं।
कैथोलिक चर्च की आधिकारिक शिक्षाएं समलैंगिकता को नैतिक रूप से गलत और समलैंगिक व्यक्तियों के बीच यौन क्रियाओं को गंभीर पाप मानती हैं। इस संदर्भ में, पोप फ्रांसिस की अपमानजनक टिप्पणी ने LGBTQ कैथोलिक समूहों, खासकर Dignity USA, को झटका और दुःख पहुंचाया है।
Dignity USA की कार्यकारी निदेशक, मैरिएन डुड्डी-बर्क ने इस पूरे प्रकरण पर अपनी गहरी निराशा व्यक्त की। उनके अनुसार, यह घटना कैथोलिक धर्म के भीतर एक बड़े मुद्दे की ओर इशारा करती है। चर्च की नकारात्मक शिक्षाओं के कारण कई लोग चर्च छोड़ रहे हैं।
हालिया सर्वेक्षणों से पता चलता है कि अधिकांश कैथोलिक समलैंगिक विवाहों का समर्थन करते हैं और चर्च की नकारात्मक दृष्टिकोण उनके चर्च छोड़ने के प्रमुख कारणों में से एक है।
इस घटनाक्रम ने LGBTQ कैथोलिक समुदाय में गहरी चिंताओं और नौकरियों को जन्म दिया है। पोप फ्रांसिस की टिप्पणी ने उनके विश्वास और धार्मिकता पर सवाल उठाए हैं।
कैथोलिक चर्च के लिए यह समय आत्मनिरीक्षण का है। समलैंगिक और अन्य LGBTQ समुदायों की नाराजगी और निराशा से निपटने के लिए चर्च को समावेशी और संवेदनशील होना होगा।
एक तरफ, जबकि चर्च की आधिकारिक शिक्षाएं समलैंगिकता को नैतिक रूप से गलत मानती हैं, दूसरी तरफ, बड़ी संख्या में कैथोलिक विश्वासियों का मानना है कि चर्च को इन मुद्दों पर अपनी दृष्टिकोण में बदलाव करना चाहिए। यह विरोधाभास चर्च के भीतर एक प्रमुख चुनौती बना हुआ है।
यह महत्वपूर्ण है कि चर्च समानता और समावेश के मूल्यों को अपनाए। LGBTQ समुदाय और उनके अधिकारों को मान्यता देने की दिशा में उठाए गए कदम चर्च और समाज के बीच आपसी सद्भावना को बढ़ा सकते हैं।
इन मुद्दों पर चर्च की स्थिति में बदलाव से संशोधित दिशानिर्देश और नीतियां उत्पन्न हो सकती हैं जो न केवल समलैंगिकों बल्कि सभी के लिए समावेशी और समर्थक हों।
जैसे-जैसे समय बदल रहा है, चर्च और समाज को भी प्रगतिशील और समानता आधारित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। यदि चर्च अपनी शिक्षाओं और दृष्टिकोणों में सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम होता है, तो यह समाज में बड़ी मात्रा में सामंजस्य और सहयोग की भावना को बढ़ावा दे सकता है।
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