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डीएमके पार्टी के पूर्व संपादक 'मुरासोली' सेल्वम का निधन: तमिलनाडु के राजनीतिक परिवार का एक प्रमुख चेहरा

तमिलनाडु के राजनीतिक परिवार की धरोहर 'मुरासोली' सेल्वम

तमिलनाडु के राजनीतिक परिदृश्य में 'मुरासोली' सेल्वम का नाम अपने आप में एक इतिहास रहा है। उनका जीवन न केवल एक पत्रकार के रूप में अत्यधिक योगदान से परिपूर्ण था, बल्कि डीएमके पार्टी के वैचारिक आधार के रूप में भी उन्होंने अपना स्थायी योगदान दिया। गुरुवार, 10 अक्टूबर, 2024 को उन्होंने बेंगलुरु में अंतिम सांसें लीं, और इस घटना ने तमिलनाडु के राजनीतिक समुदाय को शोक में डाल दिया।

सेल्वम, जो पूर्व मुख्यमंत्री 'कलाईनार' एम करुणानिधि के भतीजे और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरासोली मारन के छोटे भाई थे, उनके निधन से एक युग का अंत हो गया है। उनके निधन के समय वे अपने लेखन कार्य में लगी हुई थे, जो इस बात का प्रमाण है कि लिखना उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा था। उन्होंने डीएमके के मुखपत्र 'मुरासोली' का संपादन करते हुए अपने तीखे और विचारशील लेखनों के माध्यम से पार्टी की विचारधारा को मजबूती दी।

दूसरी ओर, मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के लिए उनका व्यक्तिगत संबंध भी अत्यंत महत्वपूर्ण था। उनकी पत्नी, स्टालिन की बहन सेल्वी रही हैं, इसलिए उनके परिवारिक और राजनीतिक संबंध अत्यधिक घनिष्ट थे। स्टालिन ने अपनी संवेदनाएं व्यक्त करते हुए कहा, "मुझे ऐसा लगता है जैसे मैंने कलाईनार के निधन के बाद वह अंतिम कंधा खो दिया जिसे मैं सहारा ले सकता था।" इसका साफ संकेत है कि कैसे सेल्वम एक मजबूत स्तंभ थे जिन पर पूरे परिवार और पार्टी खुद को टिका सकती थी।

सेल्वम की लेखन शैली की बात करें तो उन्होंने 'सिलंधी' (मकड़ी) के रूप में अपने लेखों में शोध और विचारशील व्यंग्य के साथ डीएमके के प्रतिद्वंद्वियों को लक्षित किया। इस तरह की लेखनी ने ना केवल उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बनाया, बल्कि उनके लेखन ने पार्टी को भी एक मजबूत धार दी। उनके लेखों में जिस प्रकार से भाषा की सरलता और विचार की गंभीरता होती थी, वह प्रभावशाली था। साथ ही, उन्होंने तमिल सिनेमा में भी अपनी पहचान बनाई।

वैचारिक दृष्टिकोण से देखें तो सेल्वम का योगदान अभूतपूर्व था। उनके लेखों में डीएमके की विचारधारा की सरलता के साथ-साथ उसकी गहराई का भी समावेश रहता था। उन्होंने पार्टी की विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाने में अपनी प्रमुख भूमिका निभाई। वो एक ऐसे व्यक्ति थे जिनके माध्यम से पार्टी के कई गूढ़ विचार और असहज दृष्टिकोण बॉसेस तक पहुँचाए जाते थे।

सेल्वम के योगदान का एक शोकांत अध्याय

सेल्वम का निधन निश्चित ही डीएमके की राजनीतिक और वैचारिक विरासत के एक विशिष्ट अध्याय का अंत है। उनके लेखों के रामायण के समान गंभीरता और महाभारत के समान विस्तार ने उन्हें अपने समय से पहले एक आदर्श व्यक्ति बना दिया। उनके जाने से न केवल राजनीतिक बल्कि सासंस्कृतिक विधा में भी एक शून्यता आ गई है। लेकिन उनकी लेखनी और विचारधारा हमेशा के लिए हमारे साथ रहेगी।

उनकी पुस्तकों और लेखनी के जरिए आज भी युवा पीढ़ी बेहद प्रेरणा लेकर डीएमके पार्टी के भविष्य का निर्माण कर सकती है। उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए अपने अनुभवों को साझा करना इस महासोपानी योगदान का सही साक्षात्कार होगा। राजनीतिक विचारक और पत्रकार सेल्वम के लेखों से जुड़ने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह सौभाग्य की बात होगी कि उन्होंने उनके विचारों को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया।

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17 टिप्पणि

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    deepika balodi

    अक्तूबर 11, 2024 AT 11:30

    मुरासोली सेल्वम ने पत्रकारिता और राजनीति दोनों में जो संतुलन स्थापित किया, वह दुर्लभ है। उनका लेखन अक्सर सामाजिक मुद्दों को सरल शब्दों में प्रस्तुत करता था।

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    Priya Patil

    अक्तूबर 13, 2024 AT 19:04

    उनकी लेखनी ने कई सालों तक युवाओं को प्रेरित किया। आज हम उनकी याद में उनके विचारों को फिर से पढ़ रहे हैं। यह हमारे लिए एक प्रेरणा स्रोत है। हम सभी को उनकी विरासत को आगे ले जाना चाहिए।

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    Rashi Jaiswal

    अक्तूबर 16, 2024 AT 02:37

    सेल्वम की शैलि तो बिल्कुल जादू है यार! कभी‑कभी उनका व्यंग्य थोड़ा सख़त लग जाता है, पर मुद्दा कड़क रहता है। वो जो 'सिलंधी' की तरह लिखते थे, उसमे ताना‑बाना बेस्ट था। आगे भी ऐसे ही बेधड़क लिखते रहो, भाई।

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    Maneesh Rajput Thakur

    अक्तूबर 18, 2024 AT 10:10

    वास्तव में, उनके योगदान को केवल लेखन तक सीमित नहीं रखा जा सकता। वह डीएमके के वैचारिक ढांचे को भी गहराई से समझते थे। उनका दृष्टिकोण आज भी राजनीतिक विश्लेषण में उपयोगी है।

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    ONE AGRI

    अक्तूबर 20, 2024 AT 17:44

    उनका निधन केवल एक व्यक्तिगत क्षति नहीं, बल्कि विचारधारा के निरन्तर प्रवाह में भी विराम जैसा लग रहा है। कई बार उनका लेख पढ़कर ऐसा महसूस होता था जैसे कोई पुरानी फिल्म की कहानी फिर से जी रहे हों। वह सामाजिक मुद्दों को अपने अनुभवों के साथ जोड़ते थे, जिससे पाठकों को गहरा संबंध महसूस होता। आज उनका अभाव एक खाली स्थान बन गया है, जिसे भरना आसान नहीं होगा। हमें उनकी स्मृति को जीवित रखने के लिए उनके लिखे विचारों को फिर से पढ़ना चाहिए।

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    Himanshu Sanduja

    अक्तूबर 23, 2024 AT 01:17

    उनकी लेखनी हमेशा मेरे दिल को छू जाती थी।

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    Kiran Singh

    अक्तूबर 25, 2024 AT 08:50

    सेल्वम की लेखनी हमेशा प्रेरणा देती रही 🌟। उनके विचारों को पढ़कर मैं अक्सर अपनी राय को मजबूती से पेश करता हूं 😊। हमें उनके द्वारा स्थापित मूल्यों को आगे बढ़ाना चाहिए।

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    Balaji Srinivasan

    अक्तूबर 27, 2024 AT 16:24

    उनके लिखे शब्दों में हमेशा एक सच्ची भावनात्मक गहराई दिखती थी। वह मुद्दों को बारीकी से देखते थे, जिससे उनका लेखन विश्वसनीय बनता था। इस विरासत को हम सभी को सम्मान देना चाहिए।

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    Hariprasath P

    अक्तूबर 29, 2024 AT 23:57

    सेल्वम का लेखन तो एकदम हाई क्वालिटी था, पर कभी‑कभी थोडा ओवर द टॉप भी लग जाता है। उनका शैली बहुत हाईब्रोड था, जिससे आम आदमी को समझना मुश्किल हो सकता है। फिर भी उनकी विचारधारा बहुत डिप्थ थी, और वह सच्ची इंटेलिजेंस की निशानी थी। हमें उनके बेहतरीन विचारों को सराहते रहना चाहिए।

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    Vibhor Jain

    नवंबर 1, 2024 AT 07:30

    सरल शब्दों में कहें तो, उन्होंने अपने लेखों से कई रिवर्सल ट्रेंड सेट किये। कभी‑कभी उनका टोन थोड़ा सैटि्रिक भी लगता है, लेकिन वही तो उनका आकर्षण है। इन सबको देखकर हम उनके फ़ैशन जैसे लेखन से सीख सकते हैं।

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    Rashi Nirmaan

    नवंबर 3, 2024 AT 15:04

    मुरासोली सेल्वम का निधन राष्ट्रीय स्तर पर एक महत्वपूर्ण क्षति है। उनका लेखन भारतीय राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में गहराई लाने वाला था। वह हमेशा देशभक्तिपूर्ण विचारों को प्रमुखता देते थे। इस कारण उनका योगदान अतुलनीय था।

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    Ashutosh Kumar Gupta

    नवंबर 5, 2024 AT 22:37

    सेल्वम की लेखनी में नाटकीय तत्वों का इस्तेमाल अक्सर देखा जाता था। वह अपने विचारों को मंचीय ढंग से प्रस्तुत करते थे, जिससे पाठकों को एक अलग अनुभव मिलता था। कुछ लोग इसे अत्यधिक नाट्यात्मक मानते हैं, पर यह उनका स्टाइल था। उनका लेखन शैली हमें सोचने पर मजबूर करता है। उनके अभाव में हम एक नयी दिग्दर्शिका खोजनी पड़ेगी।

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    fatima blakemore

    नवंबर 8, 2024 AT 06:10

    सेल्वम की विचारधारा में गहराई और सरलता दोनों थी। उन्होंने अक्सर जीवन के छोटे‑छोटे पहलुओं को बड़े प्रश्नों से जोड़ दिया। यही कारण है कि आज भी लोग उनके लेख पढ़ते हैं। उनका योगदान हमेशा याद रहेगा।

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    vikash kumar

    नवंबर 10, 2024 AT 13:44

    सेल्वम का लेखन शैली शैक्षणिक मानकों के अनुरूप थी, जिससे उसकी विश्वसनीयता बढ़ी। भाषा की शुद्धता और तर्कसंगतता उनके लेखों का मुख्य आधार था। यह विशेषता उन्हें अन्य लेखकों से अलग करती थी। इस विशिष्टता को भविष्य के लेखकों को अपनाना चाहिए।

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    Anurag Narayan Rai

    नवंबर 12, 2024 AT 21:17

    मुरासोली सेल्वम के योगदान को समझना एक जटिल लेकिन प्रेरणादायक कार्य है।
    उनकी पत्रकारिता की जड़ों में समाजिक मुद्दों की गहरी समझ निहित थी।
    जब वे लेख लिखते थे तो उन्होंने अक्सर तथ्य और विचार दोनों को संतुलित किया।
    यह संतुलन यह दर्शाता है कि वह केवल एक विचारधारात्मक प्रवर्तक नहीं, बल्कि एक गंभीर विश्लेषक भी थे।
    उनके लेखों में अक्सर इतिहास के पहलुओं को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत किया जाता था।
    उसका यह प्रयोग पाठकों को समय के गहराई में ले जाता था।
    वह राजनीतिक पार्टी के अंदरूनी कामकाज को भी स्पष्टता से उजागर करता था।
    उनकी शैली में भाषा की सादगी और तर्क की कठोरता दोनों मिलती थी।
    यह संयोजन उनके लेखों को व्यापक वर्गों में लोकप्रिय बनाता था।
    वह अक्सर अपनी लिखी बातों को उदाहरणों और कहानियों के माध्यम से सुदृढ़ करता था।
    इन कहानियों ने पाठकों को भावनात्मक रूप से जोड़ दिया।
    सेल्वम ने अपने कर्तव्यों को दृष्टि में रखते हुए सामाजिक परिवर्तन की दिशा में कदम बढ़ाए।
    उनकी मृत्यु के बाद कई युवा पत्रकारों ने उनके विचारों को आत्मसात करने की कोशिश की।
    इसी कारण उनका प्रभाव आज भी राजनीतिक विमर्श में महसूस किया जाता है।
    संक्षेप में कहा जाए तो, उनकी विरासत पत्रकारिता और राजनीति के संगम पर एक स्थायी मुहर है।

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    Sandhya Mohan

    नवंबर 15, 2024 AT 04:50

    सेल्वम के विचारों में अक्सर दार्शनिक गहराई झलकती थी। वह जीवन के छोटे‑छोटे पहलुओं को बड़े प्रश्नों से जोड़ते थे। इस कारण उनका लेखन हमेशा दिलचस्प रहता है।

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    Prakash Dwivedi

    नवंबर 17, 2024 AT 12:24

    उनकी लेखनी का अभाव हमें हमेशा खेद देगा।

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