22 सितम्बर 2025 को Sensex में 466 अंक की गिरावट आई, जिससे भारतीय शेयर बाजार ने नकारात्मक सत्र समाप्त किया। इस गिरावट के पीछे कई घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कारक एक साथ कार्य कर रहे थे। सबसे बड़ा असर ट्रम्प प्रशासन की नई H‑1B वीज़ा नीति ने डाला, जिससे भारतीय आईटी कंपनियों के अमेरिकी संचालन में अनिश्चितता बढ़ी। वीज़ा शुल्क में वृद्धि और पात्रता मानदंडों में सख्ती ने ये कंपनियों के अमेरिकी ग्राहकों पर निर्भरता को जोखिम में डाल दिया।
फ़ार्मा सेक्टर भी अमेरिकी टैरिफ की संभावना से हिचकिचा। भारत की दवा निर्यात राशि FY 2025 में 30 बिलियन डॉलर से अधिक पहुँच गई, और लगभग 30‑50% राजस्व अमेरिकी बाजार से आता है। यदि यूएस टैरिफ लागू हुआ, तो निर्यातकों की मार्जिन घटेगी, जिससे स्टॉक मार्केट में बेचने की लहर तेज़ हो गई।
विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) ने पूरे सितंबर में कुल 10,962 करोड़ रुपए निकाले, जबकि सिर्फ शुक्रवार को 390.74 करोड़ रुपए का हल्का खरीद संकेत मिला। घरेलू संस्थागत निवेशकों (DIIs) ने इस गिरावट के बावजूद 2,105 करोड़ रुपए की खरीदारी करके समर्थन दिखाया, पर उनका असर फीका रहा।
तकनीकी विश्लेषकों ने बताया कि निफ्टी ने 25,500 के साप्ताहिक लक्ष्य को पार नहीं किया और 25,400 के प्रतिरोध पर अटका। समर्थन स्तर 25,300 आसपास दिखा, जिससे तकनीकी चार्ट पर तेज़ बेचने का संकेत मिला।
फेडरल रिज़र्व ने इस सप्ताह 25 बिंदु बुनियादी दर कट की घोषणा की, जिससे वैश्विक लिक्विडिटी में सुधार की उम्मीद है। यह पहला सालाना दर कट है, जो उभरते बाजारों में जोखिम भरी परिसंपत्तियों की मांग को बढ़ाने की संभावनाएं रखता है। हालाँकि, इस सकारात्मक संकेत ने भारतीय बाजार में तुरंत सुधार नहीं लाया।
सेक्टर‑वार प्रदर्शन में आईटी और फार्मा शेयर सबसे ज्यादा दबाव में रहे, जबकि डिफेन्सिव सेक्टर्स जैसे यूटीआई फूड्स, ने तुलना में स्थिरता दिखाई। छोटे‑मोटे निवेशकों का ध्यान अब दो‑तीन प्रमुख तिथि‑परिवर्तन बिंदुओं पर रहा—22 और 24 सितम्बर—जहाँ intraday टाइम‑क्लस्टर्स की वजह से अस्थिरता की आशंका है।
आगे के हफ्तों में बाजार की दिशा कई बिंदुओं पर निर्भर करेगी: अमेरिकी टैरिफ की वास्तविक घोषणा, भारतीय नीति‑निर्माताओं द्वारा H‑1B वीज़ा से जुड़ी स्पष्टता, और विदेशी पूँजी के प्रवाह में बदलाव। यदि टैरिफ की संभावना कम हुई और नीति स्पष्ट हुई, तो आईटी और फार्मा दोनों सेक्टर पुनः आकर्षण पा सकते हैं। दूसरी ओर, विदेशी निवेशकों की निरंतर निकासी और तकनीकी स्तरों पर प्रतिरोध जारी रहने पर नीचे की ओर और दबाव रह सकता है।
कुल मिलाकर, भारतीय स्टॉक मार्केट अभी भी विश्व की महत्त्वपूर्ण आर्थिक झंझटों से प्रभावित है। डे‑ट्रेडर और दीर्घकालिक निवेशक दोनों को आधुनिक संकेतकों—जैसे फ़ेड की नीति, विदेशी निधि प्रवाह, और व्यापार नीतियों—पर नज़र रखनी चाहिए, ताकि वे सही समय पर जोखिम प्रबंधन कर सकें।
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