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उत्तर भारत में भीषण लू का प्रकोप जारी, यूपी-बिहार में मानसून की राहत अभी भी दूर

उत्तर भारत में मानसून की देरी, लू ने बढ़ाई मुश्किलें

उत्तर भारत के लोग आसमान में बादल और बारिश का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन मौसम विभाग की ताजा भविष्यवाणियों ने राहत की आस तोड़ दी है। उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सों में जून की शुरुआत से ही तापमान में कोई खास गिरावट नहीं आई है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जहां आमतौर पर जून में मानसून के आगमन के साथ वक्त पर राहत मिल जाती थी, वहां इस बार सूरज और उमस ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है।

भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, उत्तर प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में जून के पूरे महीने तापमान 28 से 31 डिग्री सेल्सियस से ऊपर ही रहेगा। हीटवेव की स्थिति इतनी गंभीर बताई जा रही है कि इन राज्यों के कई शहरों में दिन के अलावा रातें भी बेहद गर्म और असहज होंगी।

वहीं, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में दिन तो तपेंगे ही, रातें भी सामान्य से ज्यादा गर्म रहेंगी। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि मानसून की देरी की वजह से मिट्टी और हवा दोनों में नमी कम है, जिससे आस-पास के इलाकों में लू का प्रकोप और बढ़ जाता है।

कब मिलेगी राहत? बारिश की उम्मीदों पर पानी फिरता दिखा

IMD की रिपोर्ट में यह भी साफ है कि जून 2025 में उत्तर भारत की कई जगहों पर बारिश के नाम पर केवल औसत या उससे भी कम बूंदें गिरेंगी। राजस्थान और पूर्वी उत्तर प्रदेश में लोगों को हीटवेव के गंभीर दौर से गुजरना होगा। वहीं असम, मेघालय और बिहार में भी जून के शुरूआती दिनों में गर्म मौसम बना रहेगा।

उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के लिए थोड़ी राहत की उम्मीद मध्य जून के बाद जताई जा रही है, लेकिन तब तक तापमान गिरने के बहुत आसार नहीं हैं। मानसून फिलहाल महाराष्ट्र, कोंकण और गोवा के इलाकों में सक्रिय दिख रहा है, जहां भारी बारिश का अनुमान है। मगर उत्तर भारत में 673 मिमी के औसत जून बारिश के बावजूद हालात सूखे जैसे ही बने रह सकते हैं।

मौसम विभाग की सलाह है कि लोग लू से बचने के लिए घर से कम बाहर निकलें, ज्यादा पानी पिएं और खासतौर पर बच्चों व बुजुर्गों का ज्यादा ध्यान रखें। गर्मी से जुड़ी बीमारियों जैसे लू लगना, डिहाइड्रेशन आदि के मामले अस्पतालों में लगातार बढ़ रहे हैं। अधिकारी आपात व्यवस्था लगातार मॉनिटर कर रहे हैं।

ऐसे हालात में अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि उत्तर भारत में मानसून की देरी से किसान, मजदूर और आम लोग किस तरह से मौसम की मार सहेंगे। सबकी नजरें अब अगले कुछ दिनों की बारिश की भविष्यवाणी पर टिक गई हैं, मगर फिलहाल उत्तर भारत के अधिकतर हिस्सों के लिए राहत की खबर नहीं है।

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5 टिप्पणि

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    Santosh Sharma

    जून 18, 2025 AT 19:00

    सभी को नमस्कार, मौजूदा लू की स्थितियों को देखते हुए पर्याप्त जल सेवन अत्यंत आवश्यक है।
    नियमित रूप से पानी के साथ इलेक्ट्रोलाइट समाधान का सेवन करने से डिहाइड्रेशन से बचाव होगा।
    सुगंधित शीतल पेय या मैदा को कम करके, ताज़ा लिफाफा पानी प्राथमिकता बनाएं।
    साथ ही हल्के कपड़े पहनकर, धूप से बचते हुए, तेज़ी से चलना वर्जित रखें।
    स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों में उपलब्ध लू से बचाव की दिशानिर्देशी पुस्तिकाओं को पढ़ना उपयोगी रहेगा।

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    yatharth chandrakar

    जून 21, 2025 AT 02:34

    लू के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए विशेषज्ञों की सलाह स्पष्ट है।
    पहले, प्रत्येक व्यक्ति को दिन में कम से कम तीन लीटर पानी पीना चाहिए, विशेषकर कार्यस्थल पर।
    दूसरा, हाइड्रेटिंग फ़ूड जैसे तरबूज, खीरा और ककड़ी को भोजन में शामिल करें।
    तीसरा, घर के अंदर धूल घटाने हेतु एयर प्यूरीफायर या गीले कपड़े से साफ़-सफ़ाई करें।
    चौथा, यदि किसी को सिर दर्द या चक्कर महसूस हो तो तुरंत ठंडे पानी से चेहरा धोएँ।
    अंत में, स्थानीय स्वास्थ्य विभाग द्वारा आयोजित लू रजिस्ट्री कार्यक्रम में भाग लेना सामुदायिक सतर्कता बढ़ाएगा।

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    Vrushali Prabhu

    जून 23, 2025 AT 10:07

    यार, लु तो बिन बत्ती के भी अंधा कर देता है!!

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    parlan caem

    जून 25, 2025 AT 17:40

    सरकार की लू नियंत्रण योजना कागज़ी दिखावा है, जमीन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं।
    हर शहर में परत पर पानी बाँटने वाले सरकारी ट्रकों को देख कर लगता है कि सिर्फ दिखावा ही पर्याप्त है।
    जमीनी स्तर पर नूड़े कूदते हुए लोग जल स्रोतों को खून जैसे पिलाने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
    स्वास्थ्य विभाग का इमरजेंसी वार्डन कब तक चलेगा, यह स्पष्ट नहीं, परन्तु रोगी बढ़ते जा रहे हैं।
    किसानों को सूखे खेतों में जल देने के लिए कोई सस्ता समाधान नहीं दिया गया।
    बजट में इकट्ठा किए गए लाखों रुपये बाद में जल-शहर योजना में फँसते हैं, आम जनता के हाथों में नहीं।
    बच्चों को स्कूल में लू से लेटरिक एंफीबिया की रिपोर्ट बढ़ी है, पर शिक्षा विभाग की कोई मदद नहीं।
    रात के समय भी तापमान इतना अधिक है कि पंखे की आवाज़ ही भी ध्वनि बनाती है।
    भविष्य में यदि जलवायु परिवर्तन को नजरअंदाज किया गया तो ऐसी लूटफूटें नियमित हो सकती हैं।
    स्थानीय प्रशासन को तेज़ी से मोबाइल हेल्थ क्लीनिक चलाने चाहिए, पर उनका प्रावधान धूसर है।
    इंटरनेट पर देखे गए टिप्स भी व्यावहारिक नहीं क्योंकि लोगों के पास हल्का कपड़ा भी नहीं।
    सरकारी स्कूलों के बस्तियों में पानी की टंकी खाली ही रहती है।
    कुल मिलाकर, यह लू की मार सिर्फ प्राकृतिक नहीं, बल्कि नीति की लापरवाही भी है।
    समस्याओं को हल्का करने के लिये विशेषज्ञों को फोकस ग्रुप में बुलाईए, सिर्फ रिपोर्ट नहीं।
    आदि-अदि, जब तक सच्ची जमीन स्तर की कार्रवाई नहीं होगी, बात बनी रहेगी।
    खैर, जनता को तो बस सहन करना पड़ेगा, यही मौजूदा स्थिति का सच्चा प्रतिबिंब है।

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    Mayur Karanjkar

    जून 28, 2025 AT 01:14

    हाइड्रोपैथिक तनाव के कारण शारीरिक रोग प्रतिरोधक शक्तियों में कमी आती है; इसका मुल्यांकन तत्काल आवश्यक है।
    सांस्कृतिक रूप से जल-शमन तंत्र की पुनःस्थापना से सामुदायिक एकजुटता बुनियादी स्तर पर सुदृढ़ होगी।
    इसलिए, स्वरूपात्मक जल संरक्षण उपायों पर गंभीरता से कार्य करना चाहिए।

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